राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 क्या है, अध्यक्ष, विशेषताएँ, सिफारिशें Rashtriy Shiksha niti 1986
दोस्तों शिक्षा ही समाज और देश की प्रगति का आधार है इसलिए हर समय शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए शिक्षाविदों और शिक्षण संस्थाओ द्वारा नई-नई योजनाएँ बनायीं जाती है, जिनमे से एक है "शिक्षा नीति 1986 Rashtriya shiksha niti 1986 यह नीति तथा इसकी विशेषताएँ आप यहाँ विस्तार से समझ पाएंगे, साथ ही आप राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अध्यक्ष कौन थे, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 pdf, आदि जान पाएंगे।
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 क्या है Rashtriya shiksha niti 1986 kya hai
भारतवर्ष को आजादी मिलने के बाद शिक्षा व्यवस्था को प्रभावी और कारगर बनाने के लिए शिक्षा पर विशेष बल दिया गया तथा विभिन्न प्रकार की शिक्षण संस्थाओं का निर्माण भी किया गया, जिनमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948 माध्यमिक शिक्षा आयोग 1952 शिक्षा आयोग 1964
तथा अन्य शिक्षा से संबंधित संस्थाएं थी, जो शिक्षा व्यवस्था को मजबूत और उपयोगी बनाने के लिए विभिन्न प्रकार से परामर्श और सहयोग प्रदान करने का कार्य किया करती थी। इसी क्रम में शिक्षा में फैले अनिश्चित वातावरण को दूर करने के लिए भारत के तत्कालीन माननीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विभिन्न प्रकार के रचनात्मक कदम उठाए और
इसी क्रम में 1985 में उन्होंने शिक्षा मैं चुनौती परिपत्र प्रस्तुत किया, जिसमें यह संकेत दिया गया की शिक्षा नीति तभी सफल मानी जाती है, जब उस नीति को ठीक प्रकार से क्रियान्वित किया जा सके और उसका मूल्यांकन करके यह पता लगाया जाए की शिक्षा के क्षेत्र में क्या सुधार हुए हैं और क्या-क्या असामान्यता अब भी है। इसी परिपत्र के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति नई किस प्रकार की हो एक अहम मुद्दा बन गया
और कई प्रकार की विचार गोष्ठीयाँ सम्मेलन हुए जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में जुड़े विभिन्न संगठन जैसे, कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग राष्ट्रीय शिक्षक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के साथ ही विभिन्न राज्य स्तरीय शिक्षण संस्थाओं ने अपने विचार तथा सुझाव प्रस्तुत किया और एक नीति को बनाकर 1986 में संसद में पेश किया गया। संसद में इस नीति पर लंबे समय तक बहस हुई और अंत में सरकार से यह आश्वासन प्राप्त हुआ
कि यह नीति ठीक प्रकार से क्रियान्वित होगी, यह नीति फाइलों में बंद नहीं होगी, इस समय संसद के सदस्यों के आश्वासन को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन मानव संसाधन एवं विकास मंत्री श्री नरसिम्हा राव ने अगस्त 1986 को संसद में एक परिपत्र क्रियान्वित कार्यक्रम प्रस्तुत किया और भारत सरकार में क्रियान्वित कार्यक्रमों के अनुसार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सुझावों पर अमल करना प्रारंभ कर दिया तथा श्री कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में मई 1986 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 को लागू कर दिया गया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की विशेषताएँ Rashtriya shiksha niti 1986 ki visheshta
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की प्रमुख विशेषताएँ उनकी प्रमुख सिफारिशे में निम्न प्रकार से हैं, जिसके क्रियान्वन के लिए ठोस कदम उठाए गए:-
- राष्ट्रव्यापी शिक्षा संरचना :- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के तहत यह सुझाव दिया गया, कि संपूर्ण भारत में एक प्रकार की शिक्षा नीति लागू होनी चाहिए और इसके लिए 10+2+3 शिक्षा संरचना की सिफारिश की गई थी, जिसमें पहले 5 वर्ष प्राथमिक स्तर के उसके बाद 3 वर्ष उच्च प्राथमिक स्तर के इसके बाद दो वर्ष माध्यमिक स्तर के और इसके बाद दो वर्ष इंटरमीडिएट के इसके पश्चात 3 वर्ष स्नातक के होंगे और यह शिक्षा संरचना संपूर्ण देश में समान रूप से लागू होगी।
- राष्ट्रव्यापी पाठ्यक्रम की रचना :- इस शिक्षा नीति में यह भी सुझाव दिया गया यह भी सिफारिश की गई की संपूर्ण राज्यों के लिए एक समान पाठयक्रम बनाया जाएगा। यह पाठ्यक्रम राष्ट्रीय मूल्यों और राष्ट्रीय एकता को मजबूत और विकसित करने वाला होगा। इसके द्वारा देश की संस्कृति के प्रति चेतना जागृत होगी, पाठ्यक्रम निर्माण में राज्य और केंद्र दोनों के पास ही अधिकार होंगे।
- शिक्षा में समानता:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में यह एक प्रमुख विषय रहा, कि शिक्षा सभी के लिए समान होगी महिलाओं, प्रोढ़ो, अनुसूचित जातियों, विकलांगों तथा अल्प शिक्षकों में जो भी शैक्षिक असमानता देखी जा रही थी, वह समाप्त कर दी जाएगी अर्थात सभी प्रकार के धर्म, लिंग, जाति, वर्ग आदि के बच्चों को लोगों को समान शिक्षा के अवसर प्राप्त होंगे।
- प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण :- इस शिक्षा नीति के द्वारा सन 1990 तक 6 से 11 वर्ष तक के सभी तथा 1995 तक 11 से 14 वर्ष तक के आयु के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाएगी।
- महिला शिक्षा:- इस शिक्षा नीति में महिला शिक्षा का भी ध्यान दिया गया और यह सिफारिश की गई की महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने का प्रयास इस नीति के अंतर्गत होगा। प्राथमिक शिक्षा के साथ ही अन्य विद्यालयों में अतिरिक्त शिक्षक के रूप में महिलाओं की भी नियुक्ति होगी, विभिन्न स्तर पर तकनीकी व्यावसायिक शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित होगी और महिला और पुरुष में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा।
- केंद्र सरकार की भागीदारी:- शिक्षा को व्यवस्थित करना तथा विकास में राज्य सरकार के अलावा केंद्र सरकार भी अपना उत्तरदायित्व समझेगी और दोनों सरकार मिलकर शिक्षा के विस्तार में गुणात्मक और रचनात्मक सुधार करने के लिए उत्तरदाई होंगे।
- ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड :- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अंतर्गत ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के अंतर्गत भी सभी जरूरत की चीज उन प्राथमिक विद्यालयों को दी जाएगी जो उनके लिए एक नींव का कार्य करती हैं अर्थात है ऐसे विद्यालय जिनके पास ना तो ठीक प्रकार से भवन और शैक्षिक उपकरण हैं, इस शिक्षा नीति के अंतर्गत प्रदान किए जाएंगे तथा शिक्षक और शिक्षिकाओं की भी ठीक प्रकार से व्यवस्था होगी।
- पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा:- पिछड़े वर्ग के बच्चे जो अशिक्षित और गरीब हैं, उनके लिए विशेष प्रकार की शिक्षा के प्रबंध होंगे उनके लिए प्रमुख रूप से छात्रावासों और आश्रमों की व्यवस्था की जाएगी। वहाँ पर उन्हें नि:शुल्क भोजन पुस्तके के भी प्रदान की जाएगी आदिवासी पिछड़े वर्ग के बालकों के लिए उनकी जीवन शैली के अनुरूप पाठ्यक्रम की व्यवस्था होगी इससे उन्हें यह भी लाभ होगा कि आदिवासी अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के साथ ही पढ़ भी पाएंगे।
- अध्यापक प्रशिक्षण:- अध्यापक अर्थात शिक्षक ही एक वह महत्वपूर्ण बिंदु है, जो शिक्षा का आधारभूत स्तंभ होता है, क्योंकि शिक्षक ही नागरिकों में विभिन्न प्रकार के गुणों को विकसित कर उनको समाज और देश का निर्माणकर्ता के रूप में एक पहचान देते हैं, इसीलिए उन अध्यापकों की सेवा शर्तों में सुधार होगा, उनके पेंशन तथा भत्तो में सुधार होगा तथा वेतनमान भी बढ़ाए जाएंगे अध्यापकों की पदोन्नति स्थानांतरण प्रशिक्षण व्यवसायिक आचार संहिता के साथ उनके मूल्यांकन प्रणाली आदि के नियमों में परिवर्तन करके उन्हें आकर्षक और लाभप्रद बनाया जाएगा।
- नवोदय विद्यालय:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अंतर्गत नवोदय विद्यालय जिन्हें पेस पेंटिंग स्कूल या फिर गति निर्धारक स्कूल के नाम से जाना जाता है, का निर्माण किया जाएगा और देश के प्रत्येक जिले में कम से कम एक नवोदय विद्यालय या मॉडल स्कूल जरूर खोला जाएगा, जो पूरी तरह से आवासीय और निशुल्क होगा यहां पर सभी प्रकार के बच्चे ग्रामीण पहाड़ी पढ़ने के लिए आएंगे जिसमें अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए आरक्षण भी प्रदान किया जाएगा।
- खुला विश्वविद्यालय और दूरस्थ अध्ययन:- इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत शैक्षिक अवसरों की समानता के द्वारा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए खुला विश्वविद्यालय और दूरस्थ अध्ययन की भी व्यवस्था की जाएगी इसके लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय को अधिक मजबूत बनाया जाएगा तथा उन सभी विश्वविद्यालयों जो कि पहले से कार्य कर रहें है उनकी शिक्षा के बीच में छूट दी जाएगी और उनको लाभ दिया जाएगा अब घर पर बैठकर ही पत्राचार के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे दिल्ली हैदराबाद कोटा नालंदा मुंबई आदि जगह पर विश्वविद्यालय खोले जाएंगे और विद्यार्थी अपनी सुविधा के अनुसार पढ़ लिखकर परीक्षा पास कर सकेंगे।
- परीक्षा प्रणाली में सुधार:- इस शिक्षा नीति में परीक्षा मूल्यांकन का तरीका पूरी तरह से बदल दिया गया है, अब परीक्षार्थियों को अंकों के स्थान पर ग्रेड प्रदान किए जाएंगे और यह ग्रेड सतत मूल्यांकन के बाद ही मिलेंगे, जिसमें शैक्षिक के अतिरिक्त अन्य प्रवृतियों पर भी मूल्यांकन होगा इसमें केवल एक वार्षिक परीक्षा नहीं होगी बल्कि कई समसामयिक परीक्षाएँ होंगी और विद्यार्थी अपने अध्ययन के अनुसार सम्मिलिvishesht a
- डिग्रियों को नौकरी से अलग करना:- ऐसे पदों के लिए जहां डिग्री का होना आवश्यक ना होना कोई महत्व नहीं रखता वहां धीरे-धीरे डिग्री अथवा उपाधि की अनिवार्यता समाप्त कर दी जाएगी।
दोस्तों यहाँ पर आपने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की विशेषताएँ Rashtriya shiksha niti 1986 ki visheshta राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की सिफारिशें rashtriya shiksha niti 1986 ki sifarish आदि पढ़ा आशा करता हुँ आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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