कोठारी आयोग क्या है in hindi सिफारिशें What is Kothari Commission
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है इस लेख कोठारी आयोग क्या है सिफारिशें (What is the Kothari Commission Recommendations) में।
दोस्तों इस लेख में आप कोठारी आयोग क्या है? कोठारी आयोग की प्रमुख सिफारिशें क्या है? कोठारी आयोग का गठन तथा अध्यक्ष आदि के बारे में जानेंगे। तो आइये करते है शुरू यह लेख कोठारी आयोग क्या है सिफारिशें:-
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कोठारी आयोग क्या है What is Kothari Commission
भारत में शिक्षा के विकास का कार्यक्रम अंग्रेजों के शासन काल से लगातार चला आ रहा है तब से जितनी भी शैक्षिक नीतियाँ बनाई गई हैं उन नीतियों के द्वारा शिक्षा का प्रशासन ठीक प्रकार से चलाया गया या नहीं इसके जाँच के लिए
कई प्रकार के आयोगों का भी गठन किया गया है, किंतु इन सभी आयोगों ने शिक्षा के लगभग सभी सिद्धांतों सभी पक्षों की ठीक प्रकार से जांच नहीं की थी आयोगों का संबंध या तो विद्यालय शिक्षा या फिर विश्वविद्यालय शिक्षा से था अर्थात कह सकते हैं,
कि प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा से इनका संबंध किसी भी प्रकार से मेल नहीं खाता था। इसलिए इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा आयोग की नियुक्ति की गई और भारत सरकार ने 14 जुलाई 1964 को डीएस कोठारी की अध्यक्षता में
शिक्षा आयोग की नियुक्ति की। आयोग से भारत सरकार ने यह आशा की कि वह शिक्षा के राष्ट्रीय स्वरूप और उसके सभी स्तरों और पक्षों पर शिक्षा के विकास के लिए सामान्य सिद्धांतों और नीतियों के विषय में उसे परामर्श देगा। कोठारी आयोग
का उद्घाटन 2 अक्टूबर 1964 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में कर दिया गया इस अवसर पर राष्ट्रपति डॉक्टर राधाकृष्णन (President Dr. Radhakrishnan) थे, जिन्होंने कहा कि मेरी हार्दिक इच्छा है, कि यह आयोग शिक्षा की उन सभी पहलुओं
जैसे कि प्राथमिक माध्यमिक और विश्वविद्यालय के साथ ही उनकी प्रविधिक जांच करें तथा सभी प्रकार के सुझाव दें जिनसे हमारी शिक्षा व्यवस्था को अपने सभी स्तरों पर उन्नति करने में सहायता मिले।
कोठारी आयोग का गठन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष दौलत सिंह कोठारी द्वारा किया गया। प्रो कोठारी के अलावा इस आयोग में 14 अन्य सदस्य भी शामिल थे, जिनमें 9 सदस्य भारतीय थे और 5 सदस्य विदेशी शिक्षाशास्त्री थे
जबकि श्री जेपी नायक इसके सचिव बनाए गए थे। कोठारी आयोग ने अपने अध्ययन अनुसन्धान के लिए 12 टोलियो का गठन किया और प्रत्येक टोली को कार्य क्षेत्र भी सौंप दिया जो अपने क्षेत्र से संबंधित ज्ञान तथा व्यापक अध्ययन शिक्षा से संबंधित पहलुओं पर करेंगे
तथा अन्य टोलियों के अलावा सात अध्ययन दल प्रथक से बनाए गए। शैक्षिक संबधित समस्त बातों का अध्ययन कर आयोग ने 29 जून 1964 को अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी जो तीन भागों में विभक्त थी।
कोठारी आयोग की प्रमुख सिफारिशें Recommendations of Kothari Commission
1. राष्ट्रीय शिक्षा एवं राष्ट्रीय लक्ष्य
प्रथम अध्याय 5 खंडों में बांटा गया था जिनमें निम्न प्रकार की सिफारिशें की गई थी:-
शिक्षा एवं उत्पादन:- कोठारी आयोग ने शिक्षा को उत्पादन क्षमता से जोड़ने के लिए निम्न प्रकार के उपाय बताए हैं:-
विज्ञान कृषि तथा तकनीकी शिक्षा को महत्व दिया जाना चाहिए।
कार्यानुभव योजनाएँ शिक्षा का अभिन्न अंग होना चाहिए।
शिक्षा को व्यवसायिक रूप प्रदान किया जाना चाहिए।
सामाजिक व राष्ट्रीय एकता:- राष्ट्र में सामाजिक व राष्ट्रीय एकता के विकास और उसका सुदृडिकरण करने के लिए निम्न प्रकार के सुझाव आयोग ने दिए हैं:-
सामाजिक एवं राष्ट्रीय सेवा योजनाऐं प्रत्येक विद्यालय में अनिवार्य रुप से लागू की जानी चाहिए।
एनसीसी को चौथी योजना के अंत तक रखा जाना चाहिए।
हिंदी को संयोजक भाषा के रूप में अपनाना चाहिए।
श्रम एवं सामाजिक शिविरों को व्यवस्थित किया जाना चाहिए।
मातृभाषा या प्रादेशिक भाषाएँ शिक्षण का माध्यम होना चाहिए।
कॉमन विद्यालय स्थापित किए जाने चाहिए।
विश्व की कुछ भाषाओं के शिक्षण की व्यवस्था कुछ विश्वविद्यालयों में होना चाहिए।
शिक्षा एवं प्रजातंत्र :- किसी भी राष्ट्र की प्रजातंत्र की जड़ों को मजबूत करने के लिए शिक्षा का आधारभूत महत्व होता है, इसीलिए आयोग ने इसके लिए निम्न प्रकार के सुझाव दीजिए:-
संविधान की 45 धारा के अनुसार अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
बिना किसी भेदभाव को सबको शिक्षा ग्रहण करने के लिए समान अधिकार और अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
नेतृत्व के गुणों का विकास किया जाना चाहिए।
शिक्षा एवं आधुनिकीकरण :- आधुनिकीकरण के लिए आयोग ने निम्न प्रकार के लिए सुझाव दिए हैं:-
तकनीकी शिक्षा का विकास किया जाना चाहिए।
आधुनिक व उचित दृष्टिकोण व मूल्यों का विकास होना चाहिए।
शिक्षा के स्तरों को ऊंचा किया जाना चाहिए।
शिक्षा एवं सामाजिक नैतिक व आध्यात्मिक मूल्य :- शिक्षा के द्वारा ही छात्रों में सामाजिक नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का विकास किया जाता है, इसके लिए कोठारी आयोग ने निम्न प्रकार के सुझाव दिए हैं:-
शिक्षा के द्वारा सामाजिक नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा छात्र छात्रों की दी जानी चाहिए।
इन मान्यताओं की शिक्षा के लिए उपयुक्त शिक्षण पद्धति अपनाई जाएं इसके लिए आयोग ने प्राथमिक स्तर पर कहानी कथा तथा माध्यमिक स्तर पर वाद विवाद पर यदि उपयुक्त बताई है।
2.शिक्षा संरचना
कोठारी आयोग ने शिक्षा की निम्नलिखित संरचना को प्रस्तावित किया है:-
1से 3 वर्ष तक के छात्र छात्राओं को पूर्व विद्यालय शिक्षा
4 वर्ष से 5 वर्ष तक के छात्र-छात्राओं के लिए निम्न प्राथमिक शिक्षा
5 से 7 वर्ष तक के छात्र छात्राओं के लिए उच्च प्राथमिक शिक्षा
8 से 10 वर्ष तक के छात्र छात्राओं के लिए निम्न प्राथमिक शिक्षा
1 से 13 वर्ष तक के छात्र-छात्राओं के लिए प्राथमिक शिक्षा
13 से 15 वर्ष तक के छात्र छात्राओं के लिए उच्चतर माध्यमिक शिक्षा
अतः 10 वर्ष की समान्य शिक्षा निम्न प्राथमिक स्तर से निम्न माध्यमिक स्तर तक व्यवस्थित की जाएगी। उच्च शिक्षा के लिए आयोग ने कहा कि 3 वर्षीय प्रथम डिग्री कोर्स होगा और 2 या 3 वर्ष का द्वितीय डिग्री कोर्स होगा तथा 2 या 3 वर्ष का स्नातकोत्तर कोर्स भी होगा। आयोग ने कहा कि कुछ विषयों में स्नातकोत्तर कोर्स 3 वर्ष का होगा कुछ विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट स्कूल की स्थापना भी होनी चाहिए।
3. शिक्षक स्थिति
कोठारी आयोग ने अध्यापकों के लिए निम्नलिखित वेतन प्रस्तावित किए हैं:-
माध्यमिक शिक्षा प्राप्त प्रशिक्षित अध्यापक के लिए न्यूनतम ₹100
माध्यमिक शिक्षा प्राप्त 5 वर्षीय अनुभव प्राप्त शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक के लिए न्यूनतम रुपए 125
माध्यमिक शिक्षा प्राप्त प्रशिक्षित तथा 5 वर्ष का अनुभव प्राप्त शिक्षक के लिए न्यूनतम रुपए 150
उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त प्रशिक्षित शिक्षक उपर्युक्त शिक्षकों का 2 वर्ष पश्चात अधिकतम रुपए 250
वर्ग V में 15% 19 शिक्षक के लिए न्यूनतम 250 से ₹300
प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक के लिए न्यूनतम ₹220
उपर्युक्तओं का 20 वर्ष बाद ₹400
श्रेणी VIII मैं से 15% को 400 से ₹500
अप्रशिक्षित स्नातक के लिए ₹200
अप्रशिक्षित स्नातकोत्तर शिक्ष के लिए रुपए 300 से 600
प्रतिक्षित स्नातकोत्तर शिक्षक वर्तमान वेतन के एक वृद्धि
माध्यमिक विद्यालयों के प्रधान कॉलेजों में योग्यता अनुसार
लेक्चरर जूनियर 300 से 600
लेक्चरर सीनियर 400 से 800
रीडर्स 700 से 1100
प्रिंसिपल I 700 से 1100 प्रिंसिपल II 800 से 1500 प्रिंसिपल III 1000 से 1500
विश्वविद्यालय के लिए
लेक्चरर 400 से ₹950
रीडर 800 से 1250 रुपए
प्रोफेसर 1000 से 1600 रुपए
4. शिक्षक प्रशिक्षण
अध्यापक शिक्षा के उन्नयन में आयोग ने निम्न प्रकार के सुझाव दिए हैं:-
प्रत्येक प्रशिक्षण कॉलेज में प्रसार सेवा विभाग स्थापित किए जाने चाहिए।
एम ए तथा बी ए कक्षाओं में शिक्षा विषय पढ़ाया जाना चाहिए।
प्रत्येक राज्य में स्टेट बोर्ड ऑफ टीचर एजुकेशन की स्थापना होनी चाहिए।
प्रत्येक राज्य में कुछ कंप्रिहेंसिव कॉलेजों की भी स्थापना होनी चाहिए।
प्रशिक्षण कॉलेजों के पाठ्यक्रमों को सुधारा जाना चाहिए.
माध्यमिक स्कूलों के अध्यापकों का प्रशिक्षण 2 वर्षीय तथा माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों की प्रशिक्षण अवधि 1 वर्ष तथा M.Ed के लिए प्रशिक्षण अवधि 1.5 वर्ष निश्चित की जानी चाहिए।
प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्राध्यापक M.a. M.Ed होना चाहिए।
ग्रीष्मकालीन संस्थाएं प्रारंभ की जानी चाहिए
राज्य के द्वारा अध्यापकों के प्रशिक्षण की योजनाएँ तैयार की जानी चाहिए।
पत्राचार पाठ्यक्रम पर प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रशिक्षण महाविद्यालयों के प्रवक्ताओं के लिए ओरियंटेशन पाठ्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
5. छात्र संख्या तथा जनबल
आयोग ने सिफारिश की थी विश्वविद्यालय को चाहिए के उतने ही छात्रों को प्रवेश दें जितनी कि उनकी मांग है। आयोग ने कहा कि शिक्षा सुविधा जनबल की मांग में समन्वय तथा प्रत्यक्ष संबंध स्थापित होना चाहिए।
6. शैक्षिक अवसरों की समानता
राज्य में शिक्षा के अवसर सभी लोगों को प्राप्त होना चाहिए।
शिक्षा के प्रति किसी भी जाति वर्ग भाषा धर्म आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
प्राथमिक स्तर पर शिक्षा निशुल्क होना चाहिए।
10 वर्षों में जरूरतमंद बालकों को निशुल्क माध्यमिक शिक्षा भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
प्राथमिक स्तर पर पाठक पुस्तकें लेखन सामग्री निशुल्क दी जानी चाहिए।
माध्यमिक स्कूलों कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में बुक बैंक स्थापित किए जाने चाहिए, तथा पुस्तकालयों का विकास किया जाना चाहिए।
माध्यमिक स्तर पर छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जानी चाहिए।
विश्वविद्यालय स्तर पर 25% छात्रवृतियों का योग अवश्य होना चाहिए।
व्यवसायिक शिक्षा के लिए 30% छात्रवृति होनी चाहिए।
प्रत्येक वर्ष 500 छात्रवृत्तियाँ विदेश जाने वाले प्रतिभाशाली छात्रों को भी प्रदान की जानी चाहिए।
7. विद्यालय शिक्षा का विस्तार
कोठारी आयोग ने सभी स्तरों की शिक्षा के लिए और उनके विस्तार के लिए निम्न प्रकार के सुझाव दिए हैं:-
पूर्व प्राथमिक :- पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विस्तार के लिए आयोग के द्वारा निम्न प्रकार के सुझाव दिए गए हैं:-
प्रत्येक राज्य में स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ एजुकेशन स्थापित किए जाने चाहिए।
निजी संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। पाठ्यक्रमों को सुधारा जाना चाहिए।
प्राथमिक शिक्षा :- प्राथमिक शिक्षा के लिए कोठारी आयोग ने निम्न प्रकार के सुझाव दिए हैं:-
प्राथमिक शिक्षा को प्रभावशाली बनाया जाना चाहिए।
प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य तथा निशुल्क कर देना चाहिए।
प्राथमिक शिक्षा में अध्ययन एवं अवरोधन को रोका जाना चाहिए।
माध्यमिक शिक्षा :- माध्यमिक शिक्षा के लिए कोठारी आयोग के द्वारा निम्न प्रकार के सुझाव दिए गए हैं:-
माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण किया जाना चाहिए।
स्त्री शिक्षा के लिए विशेष प्रकार के कदम उठाए जाने चाहिए।
आदिम तथा पिछड़े क्षेत्र की ओर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।
अवसरों की समानता की व्यवस्था की जानी चाहिए।
8. विद्यालय पाठ्यक्रम
प्रत्येक स्तर पर पाठ्यक्रम के सुधार हेतु प्रथक-प्रथक पाठ्यक्रम का निर्धारण किया है। प्रत्येक स्तर पर कार्य अनुभव समाज सेवा शारीरिक शिक्षा नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा व्यवस्था सामान्य शिक्षा के साथ-साथ करने की सिफारिश की गई है:-
त्रिभाषा सूत्र को निम्न प्रकार से रखा गया है:-
मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा
संघ की राजभाषा
एक आधुनिक भारतीय यूरोपियन भाषा
आयोग ने हिंदी अंग्रेजी शास्त्रीय भाषा तथा अन्य भारतीय भाषाओं के स्थान के बारे में विचार व्यक्त किए हैं।
विभिन्न स्तरों पर पाठ्यक्रम निम्नलिखित प्रकार से रखा गया है:-
निम्न प्राथमिक स्तर :- निम्न प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा गणित विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान सृजनात्मक क्रियाएं कार्यानुभव समाज सेवा तथा स्वास्थ्य सेवा को समाहित किया गया है।
उच्च प्राथमिक स्तर :- उच्च प्राथमिक स्तर के लिए 2 भाषाएँ विज्ञान कला सामाजिक अध्ययन कार्य अनुभव समाज सेवा शारीरिक शिक्षा तथा आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा को समाहित किया गया है।
निम्न माध्यमिक स्तर :- इसके अंतर्गत 3 भाषाएँ गणित विज्ञान इतिहास भूगोल नागरिक शास्त्र कला कार्यानुभव समाज सेवा शारीरिक शिक्षा नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा को महत्व दिया गया है।
उच्च प्राथमिक स्तर:- 2 भाषाएँ तथा निम्नलिखित में से कोई तीन विषय एक अतिरिक्त भाषा नागरिक शास्त्र अर्थशास्त्र इतिहास भूगोल गणित विज्ञान मनोविज्ञान कला समाज तक भौतिक शास्त्र तथा रसायन शास्त्र जीव विज्ञान गृह विज्ञान भूगर्भ विज्ञान कार्य अनुभव समाज सेवा शारीरिक शिक्षा नैतिक आध्यात्मिक शिक्षा का है।
9. विद्यालय प्रशासन
विद्यालय प्रशासन को सुधारने के लिए कोठारी आयोग ने भी निम्न प्रकार के सुझाव दिए हैं:-
प्रशासन में मानवीय तत्व लाए जाने चाहिए।
पंचवर्षीय योजना के अंत तक निम्न माध्यमिक शिक्षा निशुल्क कर देनी चाहिए।
कुसंचालित विद्यालयों का राष्ट्रीयकरण कर देना चाहिए।
प्रशासन को निरीक्षण से दूर रखा जाना चाहिए।
प्रत्येक राज्य में स्टेट बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन की स्थापना होनी चाहिए।
केंद्र में एक नेशनल बोर्ड ऑफ एजुकेशन की स्थापना होनी चाहिए।
नेवर हुड स्कूल स्थापित होने चाहिए तथा स्कूल कांपलेक्स बनाए जाने चाहिए।
10. शिक्षण विधियाँ मार्गदर्शन तथा मूल्यांकन
शिक्षण विधियाँ:- लचीली गतिशील तथा आधुनिक होनी चाहिए उच्च शिक्षा के क्षेत्र में वाद-विवाद सेमिनार और गोष्ठियों का आयोजन किया जाना चाहिए।
पाठ्य पुस्तकें:- राष्ट्रीय स्तर पर पाठक पुस्तकों की व्यापक योजना तैयार की जानी चाहिए, पाठक पुस्तकें लिखने के लिए प्रभावशाली लेखकों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, प्रत्येक राज्य में पाठक पुस्तक समिति बनाई जानी चाहिए।
मार्गदर्शन :- 10 माध्यमिक विद्यालयों में मार्गदर्शन तथा परामर्श के लिए एक परामर्शदाता नियुक्त किया जाना चाहिए तथा सरकारें मार्गदर्शन से संबंधित साहित्य विद्यालयों को निशुल्क दें।
11. उच्च शिक्षा
उच्च शिक्षा के लिए कोठारी आयोग ने निम्न प्रकार के सुझाव दिए हैं:-
विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के मध्य सामंजस्य स्थापित किया जाना चाहिए।
उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान कार्य के लिए छह वरिष्ठ विश्वविद्यालयों का विकास किया जाना चाहिए जिनका खर्च यूजीसी देगा।
उच्च शिक्षा का गुणात्मक विकास किया जाना चाहिए।
यूजीसी केंद्रीय परीक्षा सुधार इकाई की स्थापना होनी चाहिए।
शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा होना चाहिए।
रूसी भाषा के शिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।
उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश नियम बनाए जाने चाहिए, जिनका कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।
नए विश्वविद्यालय बड़ी सावधानी से स्थापित किए जाने चाहिए।
12. उच्च शिक्षा प्रवेश व कार्यक्रम
शिक्षा के गुणात्मक विकास के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए, कि प्रवेश संबंधी अच्छे नियम बनाए जाएं और जो अवसर की समानता प्रदान कर सकें। पत्राचार पाठ्यक्रम भी चालू किए जाने चाहिए, इससे शिक्षा को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए, प्रवेश परीक्षाएँ चालू की जानी चाहिए तथा यूजीसी को अधिक शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए।
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