डाल्टन पद्धति क्या है वर्णन करें गुण दोष What is dalton method

डाल्टन पद्धति क्या है गुण दोष What is dalton method

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत-बहुत स्वागत है, आज के हमारे इस लेख डाल्टन पद्धति क्या है? वर्णन करें (what is dalton method) गुण दोष में। दोस्तों इस लेख के माध्यम से आज आप डाल्टन पद्धति क्या है?

के साथ ही डाल्टन पद्धति के प्रतिपादक कौन हैं? डाल्टन पद्धति के सिद्धांत डाल्टन पद्धति के गुण दोष के बारे में जानेंगे, तो आइए दोस्तों बढ़ते हैं, इस लेख की तरह और पढ़ते हैं, डाल्टन पद्धति क्या है गुण और दोष:-

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डाल्टन पद्धति क्या है


डाल्टन विधि क्या है what is dalton method

डाल्टन पद्धति शिक्षण की एक ऐसी पद्धति है, जिसमें बालको को उनकी रूचि, आवश्यकता तथा व्यवहार के अनुसार शिक्षा प्रदान की जाती है। इसमें कक्षाओं के स्थान पर प्रयोगशालाऐं अपना स्थान ले लेती है

तथा पुस्तकों, रेखाचित्र, सम्मेलन सभा आदि के आधार पर उन्हें शिक्षा प्रदान की जाती है। डाल्टन पद्धति एक छात्र केंद्रित शिक्षा पद्धति है,

जिसमें बालको की सुविधा के अनुसार ही बालको को शिक्षा प्रदान की जाती है, जो मुख्य रूप से उच्च और माध्यमिक कक्षाओं के बालकों के लिए उपयुक्त होती है।

डाल्टन विधि के प्रतिपादक कौन है Who is the father of Dalton's method

डाल्टन विधि के जन्मदाता :- डाल्टन विधि के जन्मदाता अमेरिका की प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्रीणी कुमारी हेलेन पार्खास्ट है। उन्होंने अध्यापक केंद्रित नीरस शिक्षण विधि से ग्रसित 8 से 12 वर्ष की आयु के छात्र - छात्राओं के लिए एक प्रभावी और नई शिक्षण विधि दी

जिसे डाल्टन विधि या डाल्टन पद्धति के नाम से जाना जाता है। इस शिक्षण विधि का प्रयोग 1912 से 1915 के बीच में किया गया किन्तु ठीक तरह से 1920 में

संयुक्त राज्य अमेरिका के मैसाचयुसेट राज्य के एक गाँव डाल्टन के विद्यालयों से हुआ इसलिए इस विधि का नाम उस गाँव के नाम पर डाल्टन विधि डाल्टन प्रयोगशाला विधि और डाल्टन पद्धति रखा गया।

डाल्टन पद्धति के प्रमुख सिद्धांत Key Principles of Dalton Method

डाल्टन पद्धति निम्न प्रकार के सिद्धांतों पर कार्य करती है:-

बालक को पूर्ण स्वतंत्रता Complete freedom to the child

डाल्टन पद्धति बालक को पूरी तरह से स्वतंत्रता देने के सिद्धांत पर निर्भर होती है। समय चक्र आदि का कोई बंधन नहीं होता है। बालक अपनी रूचि के अनुसार किसी भी विषय वस्तु को पढ़ सकता है

और नहीं भी पड़ सकता है। शिक्षक बालक के उचित कार्यों में हस्तक्षेप भी नहीं कर सकता है। इस विधि में शिक्षक एक मार्गदर्शक के रुप में होता है वह बालकों को उनकी कठिनाइयाँ,

उलझन के समय सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है, किंतु वह बालक को किसी कार्य के लिए रोक नहीं सकता है इसके अंतर्गत स्वअध्याय पर विशेष बल दिया जाता है।

बाल केंद्रित शिक्षा Child centered education

डाल्टन पद्धति बाल केंद्रित शिक्षा के सिद्धांत पर कार्य करती है, इसीलिए डाल्टन पद्धति बाल केंद्रित पद्धति होती है, क्योंकि इस पद्धति का निर्माण बालक को केंद्र में रखकर किया गया है

ना ही पाठ्यक्रम को केंद्र में रखकर। किंतु कक्षा में कुछ बालक मंद बुद्धि वाले होते हैं और कुछ बालक प्रतिभाशाली भी होते हैं, इसीलिए उन्हें सुविधा के अनुसार अलग-अलग कार्य दिए जाते हैं।

बालकों की सुविधा के अनुसार साल भर का असाइनमेंट अध्यापक से लेते हैं और उसे महीनों सप्ताह तथा दिनों में बैठकर कार्य को पूरा किया जाता है। यह अनुबंध प्रत्येक बालक के लिए अलग-अलग प्रकार का भी होता है।

विभिन्न रुचियों की पूर्ण स्वतंत्रता Complete freedom of different interests

कक्षाओं में प्रत्येक बालक एक दूसरे से हमेशा भिन्न भिन्न होते हैं। परिणाम स्वरूप उनकी रूचियाँ भी अलग-अलग होती हैं, इसीलिए इस पद्धति के अंतर्गत बालक को अपनी रूचि के अनुसार किसी भी विषय को पढ़ने की पूरी स्वतंत्रता होती है। कोई भी बालक अपनी रूचि के अनुसार किसी भी विषय को पड़ सकता है।

डाल्टन पद्धति में ध्यान रखने योग्य बातें

पाठशाला का स्वरूप - डाल्टन पद्धति में जो कक्षाएँ होती है, वह प्रयोगशाला के रूप में होती हैं और प्रत्येक विषय के लिए अलग-अलग प्रयोगशालायँ बनाई जाती हैं। इन प्रयोगशालाओं (Laboratory) में पुस्तकें रखी होती हैं और विभिन्न विषयों से संबंधित चार्ट पत्रिकाएँ भी रखी होती हैं।

पाठ की इकाई - इसके अंतर्गत पाठ को कई इकाइयों में बांट दिया जाता है और एक दिन का काम एक इकाई होता है, इस इकाई को बच्चे चाहे 1 दिन में कर सकें या फिर महीने लगाएँ वह उन पर निर्भर करता है, जबकि सप्ताह के कार्य को असाइनमेंट कहा जाता है और यह असाइनमेंट कई इकाइयों में विभक्त रहते हैं।

सम्मेलन सभा - इसके अंतर्गत जब कार्य प्रारंभ होता है तो उससे पहले सभी छात्रों का एक सम्मेलन आयोजित होता है, जहाँ पर कक्षा के अनुसार निर्देश दिए जाते हैं। शाम को फिर सम्मेलन होता है, जिसमें छात्र अपनी अपनी कठिनाइयाँ रखते हैं, जो उन्हें पाठ में होती हैं तथा शिक्षक उन कठिनाइयों का समाधान करते हैं। इस पद्धति में शिक्षक विषय विशेषज्ञ और निर्देशक के रूप में रहता है।

प्रगति के लिए रेखा चित्र का प्रयोग - इसमें बालकों के कार्य संबंधी आंकड़े रेखाचित्र पर दर्शाए जाते हैं, जिससे बालकों को अपनी तथा अपने कार्य की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त होती रहती है।

गृह कार्य - डाल्टन पद्धति में गृह कार्य का महत्व बहुत ही कम रहता है और ना के बराबर ही होता है। बालक अपनी जिम्मेदारी समझने लगता है, किंतु इसका प्रयोग केवल उच्च अथवा माध्यमिक स्तर पर ही किया जा सकता है प्रारंभिक स्तर पर इसका प्रयोग नहीं होता है।

डाल्टन पद्धति के गुण और दोष Advantages and disadvantages of Dalton method

  1. डाल्टन पद्धति में सीखने की जो प्रक्रिया होती है, वह बालक की रूचि क्षमता के अनुसार स्वतंत्र पूर्वक कार्य करने की प्रवृत्ति पर आधारित होती है।
  2. इसमें सभी शिक्षक बालकों के व्यक्तिगत रूप पर ध्यान देते है,परिणाम स्वरूप विद्यार्थी भी स्वयं अपना मूल्यांकन करते चलते रहते हैं।
  3. डाल्टन पद्धति में कुछ दोष भी है, जैसे कि इस पद्धति में बालकों को कम बोलने का अवसर मिलता है।
  4. डाल्टन विधि एक खर्चीली विधि है, इसलिए इसका प्रयोग गरीब देशों में नहीं हो पाता है।
  5. डाल्टन पद्धति में बच्चों को मौखिक भाव प्रकाशन की शिक्षा एक प्रकार से नहीं मिलती 
  6. डाल्टन पद्धति छोटे बच्चों के लिए नहीं होती है, यह पद्धति उच्च और माध्यमिक कक्षाओं के बालकों के लिए होती है।

दोस्तों इस लेख में आपने डाल्टन पद्धति क्या है गुण दोष (What is dalton method) के साथ डाल्टन पद्धति के बारे में अन्य तथ्य पड़े आशा करता हूँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।

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